यम
द्वितीया के बारे में मैंने केवल सुना था पर इसके महत्व को कभी नही जाना। यम द्वितीया को मेरा परिवार मथुरा गया वह मेरी साँस और उनके भाई यानि की मामा जी आए और दोनों ने जमुना के तट पर दिया जलाया और दीपदान भी करा वहाँ पर हमें पंडित जी ने यम द्वितीया
के महत्व को बताया तो जान कर
काफी आश्चर्य हुआ और अच्छा भी लगा।
पांच
दिवसीय दीपोत्सव के अंतिम दिन यानि यम द्वितीया को जो भी भाई बहन यमुना में स्नान करते हैं, उन्हें यम फांस से मुक्ति मिलती है। वहीं इस दिन बहिनें भाइयों के उन्नत मस्तक पर टीका कर उनकी लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं।
ये है कहानी
एक
बार सूर्य की पुत्री यमुना शापित होकर नदी के रूप में अपने उद्गम स्थल हिमालय से प्रवाहित होती हुई विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते हुए मथुरा पहुंची। काफी भ्रमण
करने के बाद यमुना
ने घाट पर विश्राम किया।
यमुना के बड़े भाई यानी की सूर्य पुत्र यमराज अपनी छोटी बहन से मिलने उनके पास आए।
यहां भाई-बहिन का भावुक मिलन हुआ और इसके बाद यमुना ने अपने भाई की मंगल कामना के लिए यमराज के माथे पर मंगल तिलक किया तो यमराज ने बहिन युमना से उपहार मांगने को कहा। यमुना ने ऐसा वर मांगा कि जिस स्थान पर हमारा मिलन हुआ है वहां कोई भी भाई बहिन मेरे जल में स्नान करेगा तो वो यमलोक के कष्टों (यम की फांस) से मुक्त हो जाए। प्रसन्न यमराज ने यमुना को उपहार स्वरूप वरदान प्रदान किया। तभी से प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल द्वितीया को बहिन-भाई एक साथ यमुना में स्नान करने को आते हैं।
यमुना
स्थित 25 घाटों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस पर्व को मनाते हैं। विश्राम घाट स्थित यमुना महारानी व धर्मराज
का मंदिर है जहाँ श्रद्धालु
स्नान के बाद मंदिर में पूजा अर्चना कर वस्त्र, श्रृंगार सामग्री अर्पित करते है।
इसके बाद बहिनें भाइयों के तिलक करती हैं भाई उन्हें उपहार प्रदान करते हैं।
Nice article
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