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लोहड़ी का त्योहार और दुल्ला भट्टी की कहानी


जानें क्यों खास है ये त्योहार, नाच-गाने के अलावा भी है लोहड़ी की अहमियत

लोहड़ी का त्यौहार कब मनाया जाता हैं

लोहड़ी का त्यौहार पौष माह की आखिरी रात (माघ संक्रांति से पहली रात) को मनाया जाता हैं, प्रति वर्ष लोहड़ी का त्यौहार 13 अथवा 14 जनवरी को पुरे उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। लोहड़ी का त्यौहार नए साल की शुरूआत में फसल की कटाई और बुवाई के उपलक्ष में मनाया जाता है।

लोहड़ी का अर्थ:

लोहड़ी का अर्थ हैः (लकड़ी)+ ओह (गोहा यानि सूखे उपले)+ ड़ी(रेवड़ी)

महाराजा दक्ष प्रजापति की बेटी सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माता के घर सेत्योहार’ (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है।

लोहड़ी के त्यौहार का इतिहास एवं महत्व:

भारत के त्यौहार देश के विभिन्न रंगों को दर्शातें हैं। यहाँ पर हर एक प्रान्त के अपने कुछ विशेष त्यौहार हैं। लोहड़ी पंजाब प्रान्त के मुख्य त्यौहारों में से एक हैं जिन्हें पंजाबी लोगो द्वारा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं। इस त्यौहार की धूम कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं।सम्पूर्ण देश में भिन्न-भिन्न मान्यताओं के साथ इन दिनों त्यौहार का आनंद लिया जाता हैं।

लोहड़ी का त्योहार और दुल्ला भट्टी की कहानी के बिना अधूरा है लोहड़ी का त्योहार

लोहड़ी का त्योहार और दुल्ला भट्टी की कहानीः

लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी के साथ भी जोड़कर देखा जाता हैं। लोहड़ी के सभी गाने दुल्ला भट्टी से ही जुड़े हैं तथा यह भी कह सकते हैं कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता है। दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था और जिसकी वंशवली भट्टी राजपूत थे। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उस समय संदल बार की जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बलपूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को ही मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी हिन्दू लडकों से करवाई और उनकी शादी की सभी व्यवस्थाएं भी करवाई थी।

लोहड़ी का प्रसाद:

बालक एवं बालिकाएं लोहड़ी से 15-20 दिन पहले हीलोहड़ीके लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। जमा की गई सामग्री से किसी चौराहे या मुहल्ले के खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गांव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है। तिल, गुड़, रेवड़ी और मूंगफली, गजक का भोग लगा कर (और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित सभी लोगों को प्रदान जाती हैं। घर लौटते समयलोहड़ीमें से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में घर पर लाने की प्रथा भी है।

लोहड़ी क्यों मनाया जाता है?

यह त्यौहार सर्दियों का मौसम जाने और बंसत का मौसम के आने का संकेत होता है। लोहड़ी की रात को सबसे ठंडा माना जाता है। इस दिन उत्तर भारत में स्थित पंजाब राज्य में अलग ही रौनक देखने को मिलती है। उनके यहां लोहड़ी बेहद धूम धड़ाके से मनाई जाती है। कुछ लोग लोकगीत गाते हैं, महिलाएं गिद्दा करती हैं तो कुछ रेवड़ी, मूंगफली खाकर नाचते-गाते हैं। लोहड़ी को फसलों का त्यौहार भी कहते हैं क्योंकि इस दिन पहली फसल कटकर तैयार होती है। पवित्र अग्नि में कुछ लोग अपनी रवि फसलों को अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से फसल देवताओं तक पहुंचती है।

लोहड़ी का आधुनिक रूप

लोहड़ी की धूम आज भी वैसी ही होती हैं बस समय के साथ-साथ जश्न ने पार्टी का रूप ले लिया हैं और गले मिलने के बजाय लोग मोबाइल और इन्टरनेट के जरिये एक दूसरे को बधाई भेजते हैं। आजकल बधाई सन्देश बड़ी ही आसानी से व्हाट्स एप और -मेल के माध्यम से भेज दिए जाते हैं। आधुनिक युग में अब यह लोहड़ी का त्यौहार सिर्फ उत्तर भारत ही नहीं (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल प्रदेश) में ही नहीं अपितु पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा के लोगो द्वारा भी बहुत ही हर्षौल्लास के साथ मनाया जाता है।

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