प्राचीन
समय में एक हिरण्यकश्यप नामक असुर राजा था।वह बहुत ही क्रूर था उसने कठोर तपस्या के द्वारा भगवान ब्रह्मा से अमर होने
का वरदान मांगा था।उसका वरदान यह था कि कोई
भी उसे ना मार सके अर्थात वह किसी भी जीव, प्राणी, राक्षस,मनुष्य, देवी, या देवता द्वारा ना मारा
जा सके और ना तो वह पृथ्वी पर हो ना आकाश में ना सुबह का समय हो ना दोपहर ना अंदर हो
ना बाहर हो ऐसी स्थिति में भी उसे कोई ना मार सके। ऐसा वरदान पाकर वह पृथ्वी पर अत्याचार
करने लगा। ऋषि मुनियों की तपस्या को भंग करने लगा और अपने आप को भगवान का दर्जा देने
लगा।उनसेकहता कि तुम विष्णु की तपस्या मत करो मुझे अपना
भगवान मानो और मेरी तपस्या करो यदि कोई ऐसा ऋषि नहीं करता तो हिरण्यकश्यप उस ऋषि को
जान से मार देता था।हिरण्यकश्यप की पत्नी
वह सती स्त्री थी और भगवान विष्णु की भक्त थी।उनका पुत्र प्रहलाद वह भी भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप
को बार बार एक चिंता सताए जा रही थी यदि मेरा पुत्र मेरी बात ना मान कर मुझे अपना भगवान
नहीं मानता तो क्या प्रजा के लोग और ऋषि मुनि मुझे अपना भगवान मानेंगे।ऐसा सोचकर उसने अपने पुत्र के खिलाफ एक षड्यंत्र
रचा षड…