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होली की पौराणिक कथा - Legend of Holi

Happy Holi

प्राचीन समय में एक हिरण्यकश्यप नामक असुर राजा था।  वह बहुत ही क्रूर था उसने कठोर तपस्या के द्वारा भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांगा था।  उसका वरदान यह था कि कोई भी उसे ना मार सके अर्थात वह किसी भी जीव, प्राणी, राक्षस, मनुष्य, देवी, या देवता द्वारा ना मारा जा सके और ना तो वह पृथ्वी पर हो ना आकाश में ना सुबह का समय हो ना दोपहर ना अंदर हो ना बाहर हो ऐसी स्थिति में भी उसे कोई ना मार सके। ऐसा वरदान पाकर वह पृथ्वी पर अत्याचार करने लगा। ऋषि मुनियों की तपस्या को भंग करने लगा और अपने आप को भगवान का दर्जा देने लगा।  उनसे  कहता कि तुम विष्णु की तपस्या मत करो मुझे अपना भगवान मानो और मेरी तपस्या करो यदि कोई ऐसा ऋषि नहीं करता तो हिरण्यकश्यप उस ऋषि को जान से मार देता था।  हिरण्यकश्यप की पत्नी वह सती स्त्री थी और भगवान विष्णु की भक्त थी।  उनका पुत्र प्रहलाद वह भी भगवान विष्णु का परम भक्त था।
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हिरण्यकश्यप को बार बार एक चिंता सताए जा रही थी यदि मेरा पुत्र मेरी बात ना मान कर मुझे अपना भगवान नहीं मानता तो क्या प्रजा के लोग और ऋषि मुनि मुझे अपना भगवान मानेंगे।  ऐसा सोचकर उसने अपने पुत्र के खिलाफ एक षड्यंत्र रचा षडयंत्र यह था कि उसने अपने सिपाहियों से कहा की है वह प्रह्लाद को हाथी के पैरों के नीचे चकुचलवा दे।  जब यह बात रानी कयादु को पता चली तो उन्होंने हिरण्यकश्यप  के सामने विनती करी और अपने पुत्र के जीवन की याचना की किंतु हिरण्यकश्यप  अपनी तपस्या और वरदान के अहंकार के कारण कयादु अर्थात अपनी पत्नी की एक भी बात ना सुनी और अपने पुत्र को हाथी के पैर के नीचे कुचलवाने के लिए भेज दिया।  जब हाथी ने प्रहलाद को देखा तो उसमें उसे भगवान विष्णु दिखाई दिए और हाथी घुटने टेककर प्रह्लाद के सामने बैठ गया। अपनी योजना को असफल होते देख राजा को बहुत बुरा लगा। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के लिए फिर दूसरी योजना बनाई इस बार उसने अपने पुत्र को ऊंचे पर्वत से नीचे फेकने को कहा।  राजा के सिपाही ने प्रह्लाद को बंदी बनाकर ऊंचे पर्वत पर ले गए और वहां से नीचे की ओर धकेल दिया। किन्तु  भगवान विष्णु की महिमा से प्रह्लाद फिर से बच गए। 

राज महल में हिरण्यकश्यप ने पाया कि उसका बेटा अभी भी जीवित है। वह अपने क्रोध पर नियंत्रण ना कर पाया और अपने सैनिकों से उसे बीच समुद्र में फेकने को कहा राजा के सिपाहियों ने बिल्कुल वैसा ही किया जैसा राजा ने उन्हें आदेश दिया था।  सिपाहियों ने प्रहलाद को एक नाव में बिठाया और उसकी कमर में रस्सी के द्वारा एक बहुत भारी पत्थर बांध दिया और  बीच समुद्र में ले जाकर समुद्र में गिरा दिया। पत्थर बांधने का कारण यह था कि यदि प्रहलाद ऊपर आते हैं तो पत्थर का वजन अधिक होने के कारण वह बाहर ना आ सके किंतु इस बार भी भगवान विष्णु ने उसके प्राणों की रक्षा की। इधर सिपाहियों  द्वारा राजा हिरण्यकश्यप  को यह सूचना दी कि प्रहलाद मारा जा चुका है ऐसा सुनकर राजा के खुशी का ठिकाना ना रहा और उनकी उनकी माता कयादु  सुनकर बेहोश हो गई और मूर्छा दूर होने पर  रो रो कर उन्होंने अपने राजा  के समक्ष अर्थात पति के समक्ष कहा कि कोई अपने पुत्र से इतनी घृणा कैसे कर सकता है ? कैसे कोई अपने प्राणों से प्यारे पुत्र को जान से मारने की योजना बना सकता है ? कैसे कोई एक राजा अन्याय कर सकता है ?

ऐसा बोलकर वह फिर से  बेहोश हो जाती हैं।  प्रहलाद भगवान विष्णु का जप करते हुए महल में प्रवेश करते हैं यह देख कर के हिरण्यकश्यप पागल हो जाता है और अपनी बहन होलिका को अपने महल आने को कहता है।

होलिका कौन थी?

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होलिका हिरण्यकश्यप की बहन और विष्णु भक्त प्रहलाद की बुआ थी।  होलिका को एक ऋषि द्वारा यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती यदि वह किसी की भलाई करे तो किंतु होलिका भी एक असुर कुल की पुत्री थी उसे सिर्फ इतना ही ज्ञात था कि उसे कोई भी अग्नि जला नहीं सकती है। जब उसके भाई ने उसे कहा कि वह प्रह्लाद को गोदी में लेकर बैठ जाए और होलिका तैयार की जाए जिसमें सूखी लकड़ियां उपले सूखे पत्ते आदि हो और उसे सुंदर फूलों से सजाया जाये। होलीका  प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर बैठ गई।

होलिका को वरदान स्वरुप 1 चुनरी प्राप्त हुई थी जब तक चुनरी उसके शरीर पर रहेगी तब तक अग्नि उसे छू भी नहीं सकती थी इसलिए उस चुनरी को उसने अच्छी तरह से अपने ऊपर फैला  लिया ताकि वह जले नहीं, अब अपने सैनिकों से होलिका में आग लगाने को कहा लकड़ी, सुखी सूखे पत्ते, सूखे उपले के कारण उसमें तुरंत आग लग गई।  इधर प्रहलाद मन ही मन भगवान विष्णु का स्मरण करते रहे और भगवान विष्णु की कृपा से इतनी जोर की आंधी आई की होलिका की चुनरी प्रहलाद के ऊपर आ गई।  होलिका जलकर भस्म हो गई प्रह्लाद के ऊपर देवी देवताओं ने फूलों की वर्षा की।  होलिका का दहन हुआ उस दिन संसार की पहली होली अर्थात छोटी होली मनाई गई शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन मुहूर्त और समय होता है उसी समय के दौरान होलिका दहन की जाती है।  होलिका दहन के बाद से तुरंत होली खेलना प्रारंभ हो जाता है।  होली का अर्थ बुराई पर सच्चाई की जीत होती है। यदि आपका कोई सगा  संबंधी या कोई ऐसा मित्र  रूठ गया हो या किसी भी प्रकार की अनबन हो

हिरण्यकश्यप का वध


हिरण्यकश्यप का वध

इस दिन सभी गिले-शिकवे भुलाकर एक दूसरे के साथ रंगो के साथ प्यार भरी होली खेली जाती हैं। अब इधर हिरण्यकश्यप को जब यह पता चला की उसकी बहन होलीका मारी जा चुकी है तो उसे बहुत क्रोध आया। उसने अपने पुत्र प्रहलाद को बंदी बना लिया और कहा कि आज वह अपने भगवान विष्णु को दिखाएं जिस विष्णु भगवान को वह हमेशा अपने मन में स्मरण करता है, आज मैं उसे साक्षात देखना चाहता हूँ। कयादु हिरण्यकश्यप की पतिव्रता स्त्री थी जब तक वह  जीवित रहती तब तक हिरण्यकश्यप को मार पाना असंभव था इसलिए भगवान ने ऐसी माया रची की  हिरण्यकश्यप  ने क्रोधित होकर अपनी रानी का अपनी तलवार से वध कर दिया। अपने पुत्र को स्वयं मारने के बजाए भगवान विष्णु को प्रकट होने के लिए अपने पुत्र प्रहलाद से कहा।  भगवान विष्णु हर एक वस्तु में, हर एक इंसान में विद्यमान है, ऐसा सुनकर हिरण्यकश्यप  ने वहां महल में मौजूद कई खंभों को अपनी गदा से तोड़ दिया। अब हिरण्यकश्यप का वध करने का समय  नजदीक आ रहा था इसलिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया जिसमें आधा शरीर  शेर का और आधा शरीर मनुष्य का था यह वही वक्त था जब ना तो सुबह थी ना ही दोपहर थी यह संध्या का समय था।  भगवान विष्णु ने ना तो धरती पर और ना ही आकाश में अर्थात अपनी जांघों पर हिरण्यकश्यप  जकड़  कर रखा और चौखट पर जाकर बैठ गए ऐसा इसलिए क्योंकि चौखट ना तो वह घर के अंदर थे और ना ही घर के बाहर थे और हिरण्यकश्यप का सीना चीर दिया और उसे मार दिया सच्चाई की जीत हुई।

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