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कलयुग का आगमन - राजा परीक्षित

भागदौड़ भरी जिंदगी में ना जाने हम कितनी ही महत्वपूर्ण चीजें अपनी जिंदगी से दूर करते चले आ रहे हैं हम अपने जीवन में इतने व्यस्त हैं कि हम अपना ध्यान आस्था की और भी नहीं रख पाते हैं आज में श्रीमद भगवत गीता की एक पौराणिक कथा बताऊंगी। यह हमारे जीवन से कैसे संबंधित है कैसे हम काल के पीछे चले जा रहे हैं -
राजा परीक्षित

यह कथा उस समय की है जब कलयुग आने वाला था। राजा परीक्षित नाम के एक राजा हुआ करते थे।  एक बार राजा परीक्षित जंगल में शिकार खेलने गए तो उन्हें बीच जंगल में एक बहेलिया मिला वह गाय और बैल को मार रहा था जो कि गाय रूपी माता थी बैल धर्म रूपी था, तब राजा ने पूछा कि तुम इन्हे  क्यों मार रहे हो बहेलिया ने कहा कि हम कहां रहे हमें रहने के लिए कहीं जगह नहीं मिल रही है तब राजा परीक्षित ने पूछा आखिर तुम कौन हो जो इतनी बुरी तरह से जानवरों को मार रहे हो तो बहेलिया ने कहा कि में कलयुग हैं, मुझे रहने के लिए स्थान चाहिए।  जहां गाय और धर्म होगा में वहां कैसे रह सकता हूँ ऐसा सुनते ही राजा परिचित ने कहा कि ठीक है, हम तुम्हें रहने के लिए 5 स्थान दे रहे हैं पहला स्थान बाजार ,दूसरा स्थान वैश्य, तीसरा जुआ, चौथा स्थान शराब और पांचवा स्थान सोना। आप इन स्थानों में रह सकते हो, बस इतना सुनते ही कलयुग  राजा के सोने के मुकुट में घुस गया ।



अब राजा जंगल में शिकार करते करते बहुत आगे बढ़ गए थे तो उन्हें भूख प्यास लग गई वह परेशान हो गए उन्हें कोई तालाब, कुआं खाने के लिए फल, पौधे दिखाई नहीं दे रहे थे। अब  राजा क्या करें कुछ दूर आगे गए तो उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया वह आश्रम श्रृंगी मुनि का था। वहां राजा ने जाकर आवाज लगाई कोई है -कोई है लेकिन कोई जवाब नहीं मिला तो उन्हें क्रोध आया उन्होंने देखा कि कोई ऋषि मुनि तपस्या कर रहा है लेकिन बुलाने पर जवाब नहीं दे रहा इसलिए उन्होंने ऋषि मुनि के गले में एक मरा हुआ सांप ला कर डाल दिया और अपने राज्य को वापस चले गए। 


श्री श्रृंगी मुनि के 1 पुत्र थे जिनका नाम बृंगी मुनि था । बृंगी मुनि वह अपने दोस्तों के साथ बाहर खेलने गए थे तो वहां पर उन्हें एक लड़के ने आकर बताया कि तुम्हारे पिताजी के गले में किसी ने मरा हुआ सांप डाल दिया है। इतनी बात सुनते ही वह अपने पिताजी के पास गए तो उन्होंने देखा कि उनके पिताजी के गले में मरा हुआ सांप लटका हुआ हैं तो उन्हें क्रोध आ गया और श्रृंगी मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिसने भी मेरे पिताजी के गले में मरा हुआ सांप डाला है वह आज के सातवें दिन सांप के काटने से मर जाएगा। थोड़ी देर बाद  श्रृंगी मुनि का ध्यान टूट गया तो उन्होंने अपने बेटे से बोला कि बेटा तुमने कोई श्राप तो नहीं दिया बेटे ने जवाब दिया कि मैंने श्राप दे दिया, तब श्रृंगी मुनि ने ध्यान लगाया तो क्या देखा कि यह तो राजा परीक्षित है, इतने बड़े राजा मेरे आश्रम में आए थे। यह क्या हो गया उनके साथ बहुत बड़ी  त्रुटि हो गई।

जब राजा परीक्षित अपने राज महल लौटे तो उन्होंने अपना मुकुट सिर से उतार कर नीचे रख दिया तो उन्हें ध्यान आया कि यह मैंने क्या किया है श्रृंगी मुनि के गले में मरा हुआ सांप डालकर चला आया। यह तो मैंने बहुत बड़ा पाप किया। तभी श्रृंगी मुनि के आश्रम से एक संदेश वाहक आया उसने कहा हे राजन आपको श्रृंगी मुनि के पुत्र बृंगी मुनि ने श्राप दिया है कि आज के सातवें दिन आप को सांप काट लेगा और आपकी मृत्यु हो जाएगी। यह बात सुनकर राजा परीक्षित ने कहा इसका कोई उपाय बताइए संदेश वाहक ने कहा कि इसका एक उपाय हैं सभी ज्ञानी ऋषि-मुनियों को बुलाया जाए और इस श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा जाए। तो सभी ज्ञानी ऋषि-मुनियों को बुलाया गया और समाधान पूछा गया,  यह उपाय ऐसा होना चाहिए कि 7 दिन में पूरा हो जाए। तब सुखदेव जी को कथा कहने के लिए कहा गया सुखदेव जी ने कहा हम कथा कहेंगे तो लिखेगा कौन तो श्री गणेश जी को कहा गया तब श्री गणेश जी तैयार हो गए। 

अब राजा परीक्षित के लिए गंगा जी के बीचो - बीच महल बनवाया गया चारों ओर फुल बागवान लगाए गए और बीच में एक रास्ता छोड़ दिया गया और वहां उपस्थित सभी सैनिको को यह आदेश दिया गया कि कोई भी सांप अगर इस रास्ते आता दिखाई देगा तो कोई उसे मारेगा नहीं लेकिन वह तो कल था जो कि किसी भी प्रकार अपना कार्य करता। अब सुखदेव जी ने कथा प्रारंभ की  और श्री गणेश जी लिखने लगे। अब सातवां दिन आया उस दिन राजा ने पूजा में उपस्थित एक फूल उठा कर सुंघा जिसमें काल बैठा था उसने राजा को काट लिया और राजा मर गया। 

यह फूल वहां पर पहुंचा कैसे, जो फूल रोज पूजा के दौरान कथा पर चढ़ाने के लिए रोज आया करते थे यह वही फूल था जिसमें से एक फूल राजा ने उठाकर सूंघ लिया और उसी फूल में सांप छुप कर बैठा था और मौका मिलते ही सांप ने डस लिया।

जब यह बात राजा परीक्षित के वैद्य को पता चली तो वह राजा के पास आने लगे उसका नाम सुखेन वैध था। उसने सोचा कि यह मेरा फर्ज है अपने राजा को बचाने का इससे अच्छा मौका अब कभी नहीं मिलेगा तो ऐसा सोचते हुए वैध राज महल की और चल दिया जब काल  पता चला कि वह राजा को बचाने आ रहा है तो कलयुग ने सोने की छड़ी का रूप बना लिया इधर सुखेन की नजर सोने की छड़ी पर पड़ी तो उन्होंने रास्ते में पड़ी छड़ी को उठा लिया और कहा यह तो बहुत अच्छी छड़ी और वह भी सोने की ऐसा बोलते हुए वैध ने थैले को छड़ी में लटका दिया और अपने कंधे पर  टांग लिया। अब  उस छड़ी ने सांप बनकर वैध के पीठ पर काट लिया सुखेन बहुत बड़ा वैध था और वह सांप का मंत्र जानता था और सांप के काटे हुए स्थान को अपनी आँखों से देख लेता है तो वह इंसान ठीक हो जाता था लेकिन वैध को तो सांप ने  पीछे पीठ पर कटा था जो उसे दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए सुखेन मर गया। कलयुग ने रास्ते में ही वैध को मार डाला ताकि राजा को बचाया ना जा सके। यह कथा श्री मद भगवत गीता की है, सुखदेव जी ने सुनाया और श्री गणेश जी ने लिखा जो 7 दिन में पूरा हुआ तभी यह कथा श्रीमद्भागवत के नाम से प्रसिद्ध हुई। 

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