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रानी कर्णावती का इतिहास

रानी कर्णावती

रानी कर्णावती राजस्थान (Rajasthan) चित्तौड़गढ़ की एक महान रानी थी । रानी कर्णावती का विवाह राजा राणा संग्राम सिंह के साथ हुआ था। उन्हें मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ के सिसोदिया वंश के राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता था। महारानी कर्णावती के 2 पुत्र थे।  राजा विक्रमादित्य और राजा उदय सिंह, रानी कर्णावती महाराणा प्रताप की दादी थी।

1526  में मुगल बादशाहा बाबर ने दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा किया। मेवाड़ के राजा राणा सांगा ने मुगल बादशाह के खिलाफ राजपूत शासकों का एक दल का नेतृत्व किया। परंतु अगले वर्ष खानवा की लड़ाई में राणा सांगा पराजित हो गए और उस युद्ध के दौरान राजा राणा सांगा को कई गहरे घाव भी लगे जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई।

अब रानी कर्णावती के कंधों पर चित्तौड़गढ़ और अपने दोनों पुत्रों को संभालने की जिम्मेदारी आ गई , कुछ समय पश्चात रानी कर्णावती ने अपने बड़े बेटे को राज्य का पदभार संभालने के लिए नियुक्त किया , किंतु अभी उनकी आयु इतने बड़े राज्य को संभालने कि नहीं थी।

इस बीच गुजरात (Gujrat) के बहादुर शाह ने 1534 में चितौड़ के नाराज सामंतो के कहने पर चितौड़ पर दुबारा से हमला कर दिया। जिसके कारण महारानी कर्णावती के बड़े बेटे की हार हुई, जिसके फलस्वरूप रानी बहुत चिंतित थी और उन्होंने कोई ठोस कदम लेने का फैसला किया।

रानी कर्णावती अपने सम्मान की रक्षा करने के लिए उन्होंने अन्य राजपूत शासकों से अपील करी, शासको ने उनके सम्मुख सहमति व्यक्त की लेकिन उनकी एक शर्त यह थी कि वह अपने दोनों पुत्रों को व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए युद्ध के दौरान बूंदी भेजेंगी।  रानी कर्णावती अपने दोनों पुत्रों को बूंदी भेजने के लिए राजी हो गई और  उन्होंने अपनी सबसे भरोसेमंद दासी पन्ना को अपने पुत्रों की देख-रेख के लिए चुना और पन्ना से कहा कि वह उनकी अच्छी तरह से देखभाल करें। दासी पन्ना ने भी अपनी रानी का सम्मान करते हुए उनके कहे हुए शब्दों को आदेश समझकर अच्छी तरह से पालन करने का आश्वासन दिलाया।

रानी को इधर भय सताया जा रहा था कि अगर बहादुर शाह के विरुद्ध कोई योद्धा नहीं डटा तो चित्तौड़ राज्य का पराजित होना  स्वभाविक है। अतः कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूं को एक राखी भेजी और उन्हें अपने भाई का दर्जा देते हुए अपनी सहायता के लिए अपील की । रानी कर्णावती हुमायूं को अपना  धर्म भाई मानती थी। हुमायूं ने भी रानी द्वारा भेजी हुई राखी का सम्मान करते हुए उनकी रक्षा करने का वचन दिया।

परंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि जब तक मुगल सम्राट हुमायूं को रानी कर्णावती के द्वारा भेजी हुई राखी मिली तब तक देर हो चुकी थी अर्थात बहादुर शाह ने हिमायू के पहुंचने से पहले ही चित्तौड़ पर विजय प्राप्त कर ली थी और रानी कर्णावती द्वारा अन्य स्त्रियो सहित जोहर किया जा चुका था। उस समय हुमायूं बंगाल (Bengal) पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा था यह क्रूर शासक के रूप में जाना जाता था ऐसा माना जाता है कि उस समय हुमायूं ग्वालियर (gwalior) में था जिसके कारण राखी उसके पास देरी से पहुंची।

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