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महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा -Legend of Mahashivaratri

भगवान शंकर और माता पार्वती

महाशिवरात्रि या शिवरात्रि का त्यौहार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी/चतुर्दशी को मनाया जाता है । हिन्दू पुराणों के अनुसार इसी दिन सृष्टि के आरंभ  में मध्यरात्रि में भगवान शिव ब्रह्मा से रुद्र के रूप में प्रकट हुए थे । इसीलिए इस दिन को महाशिवरात्रि या शिवरात्रि कहा जाता है। बहुत से श्रद्धालुओं का मानना हैं कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था।  भगवान शंकर माता पार्वती को बहुत प्रेम करते थे और उनका सम्मान भी करते थे।  भगवान शंकर को भोले बाबा के रूप में भी पुकारा जाता है जिसके फलस्वरूप हर स्त्री भगवान शंकर से उनके स्वरूप पति पाने के चाह रखती है और महाशिवरात्रि का उपवास और आराधना करती हैं।  ऐसा केवल स्त्री  नहीं पुरुष भी भगवान शंकर की उपासना और आराधना करते है ।

महाशिवरात्रि का त्यौहार हिन्दुओं का श्रद्धा से भरा प्रमुख त्यौहार होता है इस दिन श्रद्धालुगण सुबह स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर शिव मंदिर जाते है और उनकी पूजा अर्चना करते है।  कई लोग इस दिन कोरे कपड़े (नय  कपड़े ) भी पहनते हैं।  इस दिन बाजार में भगवान शिव की आराधना के लिए पूजन सामग्री मिलती है जिनमें से प्रमुख हैं बेल पत्र , भगवान शिव का सबसे प्रिय भांग , फूल , धतूरा , बेर आदि।  बहुत से श्रद्धालुओं का मानना है कि भगवान शंकर को पूजा में चढ़ाए जाने वाला प्रसाद को खाया नहीं जाता है इसलिए श्रद्धालुगण पूजा सामग्री में फलों को भी अधिक मात्रा में सम्लित करते हैं ताकि प्रसाद को ग्रहण कर सके। 

महाशिवरात्रि की कथा 

महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा अनुसार एक गांव में भील जाति का गुरूद्रूह नाम का एक शिकारी रहता था। जानवरो का शिकार करके वह अपने परिवार का पालन पौषण किया करता था।  हर दिन कि तरह आज भी शिकारी शिकार करने जंगल में गया।  बहुत देर तक शिकार की प्रतीक्षा करी परन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला अतः निराश होकर वह एक पेड़ के निचे बैठ जाता है।  मन से शिकारी अत्यंत दुःखी था बार बार वह अपने बीवी और बच्चों के बारे में सोचता फिर ओर दुःखी हो जाता अगर कोई शिकार नहीं मिला तो आज मेरे परिवार को भूखे ही सोना पड़ेगा। परिवार का मुखिया होने के नाते मेरा फर्ज बनता हैं कि में उनके लिए भोजन का इंतजाम करू। यह सब विचार उसके मन में आ रहे थे जिसके फलस्वरूप वह और दुःखी हो रहा था। 

अततः शिकारी एक पेड़ पर छिपने का निर्णय लेता है।  पास ही एक तालाब था वहां से वह एक बर्तन में पीने के लिए पानी भर लाता है और पेड़ पर चढ़ जाता हैं और अपने आपको पेड़ के पत्तो में छुपा लेता हैं।  शिकारी ने सुबह से अन्न का एक दाना तक ग्रहण नहीं करा था इसलिए वह पानी पी कर अपनी भूख मिटा रहा था।  ऐसा करने से पेड़ में मौजूद पत्ते निचे गिरने लगे और ठीक उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था परन्तु शिकारी को ज्ञात नहीं था।  शिकारी के पानी पीने से पानी की कुछ बुँदे निचे टपक जाती और हिलने से कुछ पेड़ के पत्ते गिर जाते।  अब शिकारी को शिकार का इंतजार करते हुए शाम हो जाती है और अभी भी उसे कोई शिकार नहीं मिलता ऐसा सोच कर वह और दुःखी हो जाता है।  शिकारी जिस पेड़ पर अपने आपको छुपाता है वह एक बेलपत्र का पेड़ होता है और अनजाने में वह भगवन शिव की आराधना भी करता है।  तभी वहा से एक हिरणी गुजरती है शिकारी उसे मारने के लिए जैसे ही तीर उठाता है हिरणी की नजर शिकारी पर पड़ती है

हिरणी कांपते हुए स्वर में शिकारी से कहती हैं कि कृपा करके मुझे मत मारो मुझे अपने परिवार के पास जाने दो हिरणी के ऐसा कहने पर शिकारी हिरणी से कहता है कि में तुम्हें नहीं छोड़ सकता सुबह से मैं और मेरा परिवार भूखा हैं किसी ने भी अन्न का एक दाना नहीं खाया हैं तो में विवश हूँ तुम्हें छोड़ने में।  हिरणी शिकारी को आश्वासन दिलाते हुए कहती हैं कि जिस तरह सत्य पर ही धरती टिकी है, समुद्र मर्यादा में रहता है और झरनों से जल-धाराएँ गिरा करती हैं वैसे ही वह भी सत्य बोल रही है कि वह अपने छोटे से बच्चे को अपने स्वामी के पास छोड़ कर वापिस आ जाएगी इस तरह शिकारी उसकी बात पर विश्वास कर लेता हैं। 

कुछ देर उपरांत तालाब के किनारे एक और हिरणी पानी पीने आती है शिकारी उसे देख कर खुश हो जाता हैं और जैसे ही तीर साधने लगता है (ऐसा करते हुए उसके हाथ के धक्के से फिर पहले की ही तरह थोडा जल और कुछ बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अनायास ही शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो जाती हैं) | हिरणी भयभीत होकर इधर - उधर देखने लगती है और उसकी नजर शिकारी पर पड़ती हैं वह शिकारी से जीवनदान की याचना करने लगती हैं पर इस बार शिकारी किसी भी हालत में शिकार को छोड़ना नहीं चाहता था परन्तु हिरणी उसे वापस आने का आश्वासन दिलाते हुए कहती है कि जो वचन दे कर पलट जाते हैं उनका अपने जीवन में संचित किया हुआ पुण्य नष्ट हो जाता है और इस प्रकार शिकारी पहले की तरह हिरणी पर विश्वास करके उसे जाने देता हैं। 

भगवान शंकर और माता पार्वती

शिकारी अब व्याकुल होने लगा की,अगर दोनों हिरणी में से एक भी नहीं आई तो मेरे परिवार का क्या होगा।  तभी अचानक से एक और हिरण पानी पीने के लिए आता दिखाई देता है इस बार शिकारी सतर्क हो जाता है (और पहले की तरह फिर से कुछ बेलपत्र और पानी की बुँदे शिवलिंग पर जा गिरती है और इस तरह से तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही संपन्न हो जाती  है )परन्तु हिरण शिकारी को देख लेता है और कहता की क्या तुम मुझे मारने वाले हो शिकारी हाँ बोलकर कहता है कि मेँ तुम्हारा वध करके अपने परिवार के लिए भोजन का इंतजाम करूँगा।  ऐसा सुनते ही हिरण बोल पड़ा  "धन्य हैं ये मेरा शरीर जो किसी के काम तो आया " परोपकार से मेरा जीवन सफल हो जायेगा परन्तु तुम मुझे अभी जाने दो ताकि मैं अपने बच्चों को उनकी माता के हाथ में सौंप संकू और उन सबको धीरज बंधा कर यहाँ लौट आऊं।  पूजा के प्रभाव से अब शिकारी का ह्रदय बदल गया था शिकारी ने हिरण से कहा कि तुम्हारे आने से पहले दो हिरणी आयी थी और वापस आने का आश्वासन देकर अभी तक नहीं आई अगर मैंने तुम्हें भी छोड़ दिया तो मेरे परिवार का क्या होगा।  हिरण उसे वापस आने का आश्वासन दिलाता है और कहता है कि अगर वो वापस नहीं आया तो उसे वो पाप लगेगा जो सामर्थ्य रहते हुए भी दूसरे का उपकार नहीं करते ऐसा सुनते ही शिकारी उसे भी जाने देता है और कहता है की शीघ्र ही आना। मेँ तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा। 


अब रात्रि का अंतिम प्रहर हो चुका था।  तभी उसे सब हिरन-हिरनियों को अपने बच्चों सहित एकसाथ आते देखता और वह हर्ष से प्रफुलित हो उठता है और (तरह उसकी चौथे प्रहर की भी शिव-पूजा संपन्न हो जाती है )उन्हें मारने के लिए धनुष पर तीर साधने लगता हैं।  किन्तु अब शिव की कृपा से शिकारी पाप मुक्त हो चुका होता हैं और यह सोचने को बाध्य हो जाता है कि 'ओह ये पशु धन्य हैं जो ज्ञानहीन हो कर भी अपने शरीर से परोपकार करना चाहते हैं और अपने वचन का पालन करते है लेकिन धिक्कार है मेरे जीवन को जो कि मैं अनेक प्रकार के कुकृत्यों से अपने परिवार का पालन करता हूँ।  ऐसा सोच कर वह उन्हें नहीं मारता है और उन्हें यह कह कर छोड़ देता है कि तुम सब धन्य हो। उसके ऐसा करने पर भगवान् शंकर प्रसन्न हो जाते हैं और तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाते हैं तथा उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर “गुह’’ नाम प्रदान करते हैं | यही वह गुह था जिसके साथ भगवान् श्री राम ने मित्रता की थी | बोलो भोले बाबा के जय।  

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